झारखंड राज्य पीसीएस की तैयारी के लिए अध्ययन लेख: बिरसा मुंडा और मुंडा विद्रोह
By studyhelper.in / 18 July 2024
परिचय
बिरसा मुंडा (1875-1900) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रमुख आदिवासी नायक और धार्मिक नेता थे। उनका जीवन संघर्ष, सामाजिक सुधार, और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ विद्रोह का प्रतीक है। उनका नेतृत्व “उलगुलान” (महान विद्रोह) के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जो आदिवासी अधिकारों और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए एक आंदोलन था।
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बिरसा मुंडा का जीवन परिचय
- जन्म: 15 नवंबर, 1875, छोटानागपुर के उलिहातू गांव में।
- जातीय पृष्ठभूमि: मुंडा जनजाति से संबंधित।
- शिक्षा: मिशनरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा, जहां उन्होंने ईसाई धर्म के प्रभाव और वैष्णव आंदोलन की शिक्षा प्राप्त की।
- पारिवारिक स्थिति: एक गरीब परिवार में जन्मे, बचपन से ही कठिन परिस्थितियों का सामना किया।
मुंडा विद्रोह (उलगुलान)
- समय: 1899-1900
- स्थान: छोटानागपुर क्षेत्र, विशेषकर रांची और इसके दक्षिणी क्षेत्र।
प्रमुख उद्देश्य:
- आदिवासी भूमि अधिकारों की रक्षा।
- खंटकट्टी भूमि प्रणाली (जंगल की मूल सफाई करने वालों के अधिकार) को पुनः स्थापित करना।
- अंग्रेजों द्वारा थोपी गई राजस्व और भूमि व्यवस्था का विरोध।
- आदिवासी समाज को विदेशी प्रभावों से मुक्त करना।
विद्रोह के कारण:
1. आर्थिक कारण:
- भूमि व्यवस्था का विघटन; खंटकट्टी भूमि प्रणाली का अंत।
- बाहरी जागीरदारों और ठेकेदारों का आगमन।
- जबरन श्रम (बेथ बेगरी) और आदिवासियों का गिरमिटिया श्रमिकों के रूप में शोषण।
2. सांस्कृतिक कारण:
- मिशनरियों द्वारा आदिवासी परंपराओं का ह्रास।
- ईसाई और गैर-ईसाई मुंडाओं के बीच बढ़ती दरार।
3. धार्मिक कारण:
- बिरसा ने आदिवासियों को पारंपरिक सरना धर्म में लौटने और अंधविश्वास छोड़ने के लिए प्रेरित किया।
4. राजनीतिक कारण:
- अंग्रेजी शासन का विरोध और मुंडा राज की स्थापना की मांग।
बिरसा मुंडा का नेतृत्व और विचारधारा
- धार्मिक सुधारक:
- अंधविश्वास, पशु बलि, मादक पदार्थों के सेवन का विरोध।
- पारंपरिक उपवनों में पूजा को प्रोत्साहन।
- राजनीतिक दृष्टिकोण:
- मिशनरियों, ठेकेदारों, जागीरदारों और अंग्रेजी अधिकारियों का विरोध।
- मुंडा समाज को आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बनाने की योजना।
- कृषि व्यवस्था:
- आदिवासी किसानों के अधिकारों की पुनर्स्थापना।
- “मुल्की लदाई” (भूमि संघर्ष) और “सरदार लदाई” से प्रेरित आंदोलन।
विद्रोह की प्रमुख घटनाएँ:
- जेल में बिरसा:
- 1895 में बिरसा को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया और 2 साल की सजा दी।
- जेल से लौटने के बाद उन्होंने आंदोलन को और मजबूत किया।
- गुप्त रात्रि सभाएँ:
- 1898-99 के दौरान जंगलों में विद्रोहियों के साथ बैठकें।
- विद्रोह का चरम:
- पुलिस थानों, चर्चों और मिशनरी संपत्तियों पर हमले।
- टिकादारों, जागीरदारों और अन्य दमनकारी वर्गों का विरोध।
विद्रोह का प्रभाव और परिणाम:
- अंग्रेजी दमन:
- अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए व्यापक कार्रवाई की।
- बिरसा को गिरफ्तार कर 1900 में जेल में बंद किया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई।
- कानूनी सुधार:
- “छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट 1908” पारित हुआ, जिसने आदिवासी भूमि अधिकारों को संरक्षित किया।
- सामाजिक जागरूकता:
- आदिवासी समाज में शिक्षा और संगठित संघर्ष का प्रसार।
- बिरसा मुंडा की स्मृति और योगदान ने आदिवासियों में आत्मसम्मान की भावना जगाई।
बिरसा मुंडा की विरासत:
- भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में स्थान:
- आदिवासी समाज के पहले स्वतंत्रता सेनानी।
- संसद के सेंट्रल हॉल में बिरसा का चित्र।
- सामाजिक प्रेरणा:
- आदिवासियों के अधिकारों के प्रतीक।
- झारखंड राज्य में “बिरसा मुंडा दिवस” के रूप में हर वर्ष 15 नवंबर को उनका जन्मदिन मनाया जाता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक नेता:
- सरना धर्म और आदिवासी परंपराओं को पुनर्जीवित करने वाले।
निष्कर्ष:
बिरसा मुंडा का जीवन संघर्ष, बलिदान और परिवर्तन का प्रतीक है। उनकी विचारधारा और नेतृत्व ने न केवल आदिवासी समाज को प्रेरित किया, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भी समृद्ध किया। झारखंड राज्य पीसीएस की तैयारी करते समय, बिरसा मुंडा और उनके नेतृत्व में हुए मुंडा विद्रोह को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से समझना अनिवार्य है।
मूल्यवान तथ्य:
- जन्म: 15 नवंबर, 1875
- मृत्यु: 9 जून, 1900
- विद्रोह: 1899-1900
- प्रमुख उपलब्धि: छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट 1908 का आधार तैयार करना।
प्रेरणा:
बिरसा मुंडा ने दिखाया कि सीमित संसाधनों के बावजूद साहस, संगठन और नेतृत्व के बल पर बड़ा परिवर्तन संभव है।